"ईश्वर की परिभाषा"
कुछ लोग पूछते हैं मुझसे कि ईश्वर होता क्या है? क्या है इसका अस्तित्व? मैं बोलता हूं कि ईश्वर का अर्थ ही होता है विश्वास, आत्मज्ञान, समर्पण, त्याग और आदि| जहां कुछ नहीं है वहां ईश्वर है, जहां सब कुछ है वहां ईश्वर है, इस जहान के सारे कण-कण में ईश्वर है|
कुछ लोग पूछते हैं मुझसे क्यों नहीं दिखता ईश्वर? ईश्वर सत्य में भी है या मिथ्या है? मैं बोलता हूं यदि ईश्वर को ढूंढ रहे हो संसार में या पत्थर की मूर्ति में तो वह नहीं दिखेगा| यदि ईश्वर को देखना है, तो ईश्वर को पत्थर या मूर्ति में देखना छोड़ कर के इंसानों में देखना शुरू करो| ईश्वर सभी मनुष्य, सभी जानवर, सभी पक्षी और इस संसार के सभी कण -कण में वास करते हैं| कबीरदास जी खूब सही कहते हैं:-
कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे बन माहि|
ऐसी घट घट राम है, दुनिया देखे नाही||
कुछ लोग पूछते हैं मुझसे कि मैं ईश्वर को कैसे पा सकता हूं? मैं बोलता हूं उनसे ईश्वर को किसी की सहायता करके पा सकते हैं क्योंकि जब हम किसी की मदद करते हैं, तो जो हमारे मन में अनुभूति होती है| वह ईश्वर होता है, जब कोई व्यक्ति हमें शुक्रिया कहता है दिल को सुकून मिलता है, तो वह ईश्वर होता है| ईश्वर इधर-उधर नहीं है ईश्वर सारे संसार में है| वह हम सब में है|
कुछ लोग पूछते हैं मुझसे ईश्वर दिखते कैसे हैं? मैं बोलता हूं ईश्वर निराकार है| उनका कोई आकार नहीं है| उनका ना ही कोई अंत है ना ही कोई शुरुआत| वह अनंत है| उनको जिस स्वरूप में अपने मन में बसा लो वह उसी स्वरूप में होते हैं| ईश्वर को जिस रूप में अपने दिल में बसा लो वह उसी रूप में दिखाई देते हैं|
भगवान हर विश्वास में है| उनको यदि दिल से देखो तो हर जगह दिखाई देंगे| उनको पूजा से नहीं कर्म से पाया जा सकता है| जो कर्म करता है, वही फल पाता है| ईश्वर उन्हीं की सहायता करते हैं, जो अपनी सहायता खुद करना जानते हैं| किसी ने क्या खूब कहा है:-
हिम्मत ए मर्दा मदद ए खुदा
भगवान को प्रेम से जीता जा सकता है| जो व्यक्ति किसी से प्रेम नहीं करता| जो व्यक्ति काम, ईर्ष्या और आदि में लिप्त है| वह व्यक्ति कभी भगवान को नहीं पा सकता| ईश्वर उन्हीं पर अपनी कृपा दृष्टि बनाते हैं, जो दूसरों की सहायता करता है, जो दूसरों से प्रेम करते हैं, जो किसी से घृणा नहीं करते|
लोग पूछते हैं मुझसे ईश्वर की परिभाषा क्या है? मैं यही बोलता हूं कि ईश्वर का परिभाषा ही प्रेम, विश्वास, उदारता और निस्वार्थ आदि है| जो यह सब अपना लेता है, जो किसी से घृणा नहीं करता, जो सब के साथ प्रेम से रहता है, वह ईश्वर को पा लेता है|
धन्यवाद|
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